मध्यप्रदेश में हाल के कुछ वर्षों में जैविक खेती के मामले में तेजी से काम हुआ है। कृषि क्षेत्र की संस्था एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट एक्सपोर्ट डेव्हलपमेंट अथॉरिटी (एपीडा) के अनुसार प्रदेश में मौजूदा समय में पांच लाख 75 हजार हेक्टेयर में जैविक खेती की जा रही है। उधर, हाल ही में केंद्र सरकार ने आम बजट प्रस्तुत किया है, इसमें जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। एक क्लस्टर 50 एकड़ का होगा व क्लस्टर में 25 से 50 किसान होंगे। क्लस्टर का पंजीयन परियोजना संचालक आत्मा करेंगे।
मप्र में 313 विकासखंड के 1800 से अधिक गांवों में बड़ी संख्या में जैविक खेती को अपनाया गया है। जैविक खेती करने वाले किसानों को अनुदान भी दिया जा रहा है। इसमें फसलों की पैदावार के लिए बीज खरीदने और उपज को बाजार में पहुंचाने के लिए हर किसान को तीन साल में प्रति एकड़ 20 हजार रुपए अनुदान के रूप में दिए जा रहे हैं।
मप्र में 313 विकासखंड के 1800 गांवों के किसानों ने अपनाई जैविक खेती
अनुसंधान के लिए मंडला में खुलेगा केंद्र
जैविक खेती में हो रहे नए-नए अनुसंधान की जानकारी देने के लिए मंडला में जैविक अनुसंधान केंद्र की स्थापना की जा रही है। प्रदेश में जैविक उत्पादों की बिक्री के लिये भी किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग ने जैविक उत्पाद की बिक्री के लिए चयनित कृषि उपज मंडियों में अलग व्यवस्था की है।
ऐसे बनाए वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद)
12 फीट लंबा, पांच फीट चौड़ा व तीन फीट गहरा एक नाडेप (ईंट-सीमेंट का ढांचा) तैयार करें। कचरा, पत्ते व गोबर डालकर 100 केंचुए डालें। ऊपर जूट के बोरे डालकर सुबह, शाम पानी डालें । इसमें 60 प्रति शत से ज्यादा नमी ना रहे। दो महीने बाद खाद बन जाएगी। 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से इस खाद का उपयोग करें। खाद तैयार करने में मात्र पांच से छह हजार रुपए ही खर्च आता है।
पक्का नाडेप विधि
नाडेप का आकार : लंबाई 12 फीट, चौड़ाई 5 फीट व ऊंचाई तीन फीट।
सामग्री : 75 प्रतिशत वनस्पति के सूखे अवशेष, 20 प्रतिशत हरी घास, गाजर घास, पुवाल, 5 प्रतिशत गोबर व दो हजार लीटर पानी। सभी प्रकार का कचरा छोटे-छोटे टुकड़ों में हो। गोबर को पानी में घोलकर कचरे में भि गो दें।
पहली विधि : कचरा 4 इंच तक भर दें। दो इंच मिट्टी डाल दें। पानी से भिगो दें। नाडेप जब पूरा भर जाए तो इसे चार इंच मिट्टी से ढंक दें।
दूसरी विधि : कचरे के ऊपर 12 से 15 किलो रॉक फास्फेट की परत बिछाकर पानी से भिगो दें। इसके ऊपर एक इंच मोटी मिट्टी बिछाकर पानी डाल दें। गड्ढा पूरा भरने पर चार इंच मोटी मिट्टी से ढंक दें।
मटका खाद : 10 लीटर गोमूत्र, 10 किलो गोबर, 500 ग्राम गुड़, 500 ग्राम बेसन को एक मटके में रख 10 दिन तक सड़ने दें। फिर 200 लीटर पानी में घोलकर गिली जमीन पर कतारों के बीच छिड़क दें।
लागत : जैविक खेती किसी तयशुदा कार्यमाला के तहत नहीं हो सकती जैसी रासायनिक खेती में होती है। मोटे तौर पर जैविक खेती की लागत रासायनिक खेती की तुलना में 30 से 40 प्रतिशत तक कम होती है।
ऐसे समझें लाभ का गणित
गेहूं : रासायनिक खेती : प्रति एकड़ 9500 रुपए खर्च होते हैं। इसमें 40 किलोग्राम बीज लगता है जो 2500 रुपए का है। सिल-ड्रिल से बुआई 500, खाद 3000 रुपए, खरपतवार नाशक दवाई 1000, हार्वेस्टर 2500 रुपए लगते है। उत्पादन 12 क्विंटल होता है। बाजार में भाव 1500 रु. प्रति क्विंटल है यानी 18 हजार कीमत है। यानी 8500 रुपए का मुनाफा होता है।
जीरो बजट खेती : 40 किलोग्राम बीज लगता है जो 2500 रुपए का है। जैविक खाद 1400 रुपए का आता है (200 का जैविक खाद, जिसे साढ़े 3 महीने देना होगा)। सिल-ड्रिल मशीन से बुआई 500 रु. और हार्वेस्टर चलाने पर 2500 रु. लगेंगे। यानी 6900 रु. लगेंगे। उत्पादन प्रति एकड़ 17 क्विंटल आता है। बाजार में कीमत 2500 रु. प्रति क्विंटल है। यानी 35 हजार 600 रुपए का शुद्ध मुनाफा होता है।
कपास : रासायनिक खेती : इस पद्धति से खेती करने पर 10 हजार रुपए लगते हैं। कपास का एक पैकेट (400 ग्राम) 1000, बुअाई 500, खाद 5 हजार, निंदाई-गुड़ाई 1000, रसचूसक कीड़े से बचाने के लिए 2000, चुनाई के 500 रुपए लगते हैं। 10 क्विंटल प्रति एकड़ उपज निकलती है। बाजार भाव 4000 रुपए है। यानी 40 हजार रुपए है। मतलब 30 हजार रुपए की आमदनी होती है।
जीरो बजट खेती : इसमें 5400 रुपए का खर्च आता है। बीज की खरीदी एक बैग (400 ग्राम) 1000, निंदाई-गुड़ाई के 1000, बुआई के 500 रुपए, चुनाई 500 रुपए, जैविक खाद (6 माह की फसल है, हर 15 दिन में 200 रुपए का खर्च) डालने पर 2400 का खर्च होता है। उत्पादन 15 क्विंटल होता है। बाजार भाव 5000 रुपए प्रति क्विंटल होता है। मतलब 75 हजार की उपज होगी। यानी 69 हजार 600 का शुद्ध मुनाफा होता है।
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